चंडीगढ़। हरियाणा और पंजाब में सिविल जजों की भर्ती में गड़बड़ी के आरोप सामने आए हैं। ये आरोप लगाए हैं चंडीगढ़ ज्यूडिशल एस्पिरेन्ट्स यूनियन ने। यूनियन ने सोमवार को चंडीगढ़ प्रेस क्लब में प्रेस कॉन्फ्रेंस की जिसमें उन्होंने कहा कि एग्जाम के में अनियमितताएं बरती गईं। उन्होंने कहा कि चयन के नियमों की धज्जियां उड़ाई गई हैं। उम्मीदवारों के साथ लिखित परीक्षा और इंटरव्यू दोनों में भेदभाव किया जाता है। उन्होंने बताया कि कई बार परीक्षा इतनी जल्दी करवी दी जाती है कि कैंडिडेट्स को तैयारी करने का समय ही नहीं मिलता।
जजों की भर्ती के परिणामों में कथित विसंगतियों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई लेकिन माननीय अदालत ने उसे बहुत ही जल्द खारिज कर दिया। यूनियन ने बताया कि कुल 3111 प्रश्नपत्रों में से प्रत्येक दो भाषाओं में टेबल मार्किंग द्वारा मूल्यांकन किया गया था। 23 दिनों में प्रत्येक पेपर के लिए एक मूल्यांकनकर्ता, प्रभावी रूप से 3 मिनट से कम समय में एक पेपर का मूल्यांकन करता है।यह कैसे सम्भव है कि इसमें न्याय हो।
इंटरव्यू की बात करें तो निम्नलिखित अनियमितताएं स्पष्ट हैं:
- लिखित परीक्षा में अधिक अंक प्राप्त करने वाले कई मेधावी उम्मीदवारों को इंटरव्यू में कम अंक दिए गए। जबकि लिखित परीक्षा में कम अंक प्राप्त करने वालों को इंटरव्यू में अधिक अंक दिए गए। एक ऐसा अभ्यर्थी जिसने लिखित परीक्षा में 900 में से 531 अंकप्राप्त कर चौथा स्थान हासिल किया, उसे इंटरव्यू में 200 में केवल 7 अंक दिए गए जिस वजह से वह असफल रहा। 9 उम्मीदवार ऐसे हैं जिन्होंने लिखित परीक्षा में 500 से अधिक अंक प्राप्त किए, लेकिन इंटरव्यू में उन्हें 30 से कम अंक दिए गए।
ऐसे हुईं गड़बड़ी
-. इंटरव्यू में भाग लेने वाले 455 उम्मीदवारों में से केवल 22 उम्मीदवारों ने 100 से अधिक अंक प्राप्त किए।
- 324 उम्मीदवारों को 60 से कम अंक दिए गए
- 274 उम्मीदवारों को 50 से कम अंक दिए गए
- 55 उम्मीदवार ऐसे हैं जिन्होंने लिखित परीक्षा में 470 से अधिक अंक प्राप्त किए, लेकिन असफल रहे क्योंकि उन्हें इंटरव्यू में 65 से कम अंक दिए गए थे।
- समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करते हुए आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों का अलग से इंटरव्यू लिया गया
-. 200 अंकों के इंटरव्यू केवल 3से 7 मिनट के थे जबकि न्यायमूर्ति जगन्नाथ शेट्टी आयोग की सिफारिशों के मुताबिक इंटरव्यू 25-30 मिनट के लिए होने चाहिए।
इंटरव्यू के लिए नहीं थे कोई सिद्धांत
आरटीआई के जवाबों से पता चलता है कि इंटरव्यू आयोजित करने के लिए कोई मार्गदर्शक सिद्धांत नहीं थे। न ही प्रश्नों की एकरूपता के लिए कोई दिशा निर्देश थे। इंटरव्यू की कार्यवाही को न तो दर्ज किया गया और न ही नोट किया गया। असफल उम्मीदवारों में से कई अन्य राज्यों में सिविल जज, या सहायक लोक अभियोजक, या कानून में व्याख्याता के रूप में काम कर रहे हैं, या अपने संबंधित विश्वविद्यालयों में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों (एलएलएम) में स्वर्ण पदक विजेता हैं। एक असफल उम्मीदवार को बाद में सीधे चयन में दो अन्य राज्यों में अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के रूप में चुना गया। उपरोक्त विश्लेषण से पता चलता है कि या तो मुख्य परीक्षा के स्तर पर अंकन योजना में गंभीर रूप से कुछ गलत है, या