प्रशासन द्वारा चंडीगढ़ में डेपुटेशन पर काम कर रहे कर्मचारियों/अधिकारियों के लिए दोगली नीति का प्रयोग करता है-भगत राज तिसावर

रागा न्यूज़ चंडीगढ़ – प्रशासन द्वारा चंडीगढ़ में डेपुटेशन पर काम कर रहे कर्मचारियों/अधिकारियों के लिए दोगली नीति का प्रयोग करता है ।

यह कहना है अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवम पिछड़ा वर्ग वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष भगत राज तिसावर का। तिसावर ने आगे कहा कि डेपुटेशन पर कार्यरत कर्मचारियों में भी साफ तौर पर भेदभाव किया जा रहा है । जिसमें दलित कर्मचारियों के लिए अलग पॉलिसी अपनाई जाती है तथा गैर दलित कर्मचारियों के लिए अलग पॉलिसी । प्रशासन का यह रवैया दलित संगठनों में आक्रोश भरने का काम कर रहा है ।

उदाहरण देते हुए तिसावर ने बताया कि मेडिकल ऑफिसर स्वास्थ विभाग नगर निगम चड़ीगढ़ पीएस. भट्ठी, (जोकि अक्टूबर 2018 में रिटायर होने वाले थे) को अप्रैल 2018 में ही चंडीगढ़ भाजपा के राजनैतिक दबाव के कारण बिना किसी गलती के उनके पैरेंट स्टेट वापिस भेज दिया गया था । जबकि कूलिंग पीरियड में किसी कर्मचारी को वापिस नहीं भेजा जाता । हाल में चल रहे शिक्षा विभाग के दोनों जातिगत प्रताड़ना के मामलों में प्रशासन की पॉलिसी का दोगलापन साफ देखा जा सकता है ।

जिसमें सेक्टर 18 के सरकारी स्कूल की प्रिंसिपल राजबाला जो की पिछले 30 साल से चंडीगढ़ में डेपुटेशन पर है तथा मनीमाजरा स्कूल की टीचर सरिता मोर जोकि 20 साल से डेपुटेशन पर है, को इतने बवाल के बाद भी रिपेट्रिएट करके उनके पैरेंट स्टेट हरियाणा में नहीं भेजा जा रहा । ध्यान देने वाली बात है की डेपुटेशन का कार्यकाल केवल पांच साल का होता है । परंतु प्रशासन की मिलीभगत तथा राजनैतिक आकाओं के सहारे यह मनमानी अंजाम दी जाती है । इस प्रकार का दोगला व्यवहार साबित करता है की चंडीगढ़ प्रशासन का रवैया दलितों के प्रति नकारात्मक है । प्रशासन क्यों इन पीड़ित शिक्षिकाओं, जो की दलित समाज से संबंध रखती हैं को न्याय नहीं दे पा रहा । इस प्रकरण के मद्देनजर तिसावर ने भारत के राष्ट्रपति महोदय को पत्र लिख कर कहा कि चंडीगढ़ प्रशासन की डेपुटेशन पॉलिसी में सुधार के लिए मामले का संज्ञान लेते हुए उचित निर्देश जारी किए जाएं।

ताकि सबके लिए एक जैसा कानून लागू किया जा सके । तिसावर ने यह भी कहा की चंडीगढ़ प्रशासक के सलाहकार धर्मपाल का दलित समाज के प्रति जो रवैया है वह सकारात्मक नहीं है । अतः उनको भी चंडीगढ़ से तुरंत प्रभाव से बदला जाए । शिक्षा विभाग में हुए जातिगत उत्पीड़न के दोनों ही मामलों से उनका भलीभांति परिचित होते हुए भी मौन रहना तथा उचित कार्यवाही न करना इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है ।